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(गीता-4) मर जाओ, फिर लड़ जाओ || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2022)

2024-11-15 4 Dailymotion

वीडियो जानकारी: शास्त्र कौमुदी, 17.04.2022, ग्रेटर नॉएडा<br /><br />प्रसंग: <br />मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।<br />आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।<br />हे कुन्तीपुत्र, इन्द्रियों और विषयों का संस्पर्श ही शीत-उष्ण और सुख-दुःख का देने वाला है। <br />वे आते हैं और नष्ट हो जाते हैं, इसलिए अनित्य हैं। अतः हे अर्जुन, तुम तितिक्षा दर्शाओ।<br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक १४)<br /><br />यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।<br />समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।।<br />हे पुरुष श्रेष्ठ, ये शितोष्णादि जिस धीर व्यक्ति को व्यथित नहीं कर पाते, <br />सुख-दुःख में एक सा रहने वाला वह व्यक्ति आनंद अमृत का अधिकारी होता है।<br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक १५)<br /><br />नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।<br />उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।।<br />असत् वस्तु का अस्तित्व नहीं है, परन्तु सत् वस्तु का कभी अभाव नहीं है, <br />तत्त्वज्ञानियों के द्वारा इन दोनों का स्वरूप देखा गया है।<br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक १६)<br /><br />अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।<br />विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित् कर्तुमर्हति।।<br />जिसके द्वारा यह समस्त संसार व्याप्त है, उसी को विनाश-रहित अर्थात नित्य जानो। <br />कोई भी इस नित्य आत्मा का विनाश करने में समर्थ नहीं होता।<br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक १७)<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~<br />

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